प्रेक्षा और अविरल को घर आये आज दो दिन हो गए थे.... प्रेक्षा घर से कम बाहर निकलती थी.... पर अविरल छुट्टियों के पुरे मज़े ले रहा था... चाहे वो किसी की वाड़ी से फल चुराना हो या गांव के बच्चों के साथ क्रिकेट खेलना हो... प्रेक्षा पूरा दिन घर मे रहती थी...|
एक दिन वो दादी के कमरे मे किसी काम से गयी.... दादी के कमरे की एक दीवार मे कई सारी किताबें और तस्वीरें थी...दादू.. पापा...माँ और प्रेक्षा की भी.... उस दिवार को देख ऐसा लगता था जैसे दादी ने अपना पूरा जीवन सहेज रखा हो.... प्रेक्षा एक एक तस्वीर को देखने लगी...|
उसे उसके बचपन की तस्वीरें भी दिखी.... उसके दोस्त और एक मुँह बोला पति... यानि की अविरल... प्रेक्षा और अवि बचपन से साथ थे.. प्रेक्षा लगभग छः साल की होंगी जब अविरल के पापा का ट्रांसफर गांव की स्कूल मे हुआ था.... प्रेक्षा अक्सर चुप रहने वाली लड़की थी.... उसके कुछ गिनिंदा दोस्त ही थे.... प्रेक्षा और अवि एक ही स्कूल मे जाते थे और दोनों जल्दी दोस्त बन गए.... जब प्रेक्षा के पापा नशे मे घर की चीजों की तोड़फोड़ किया करते थे तो अविरल ही था जो उस रोती हुई प्रेक्षा को चुप करता... एक दिन नवराते के वक्त गांव मे एक छोटा सा प्रोग्राम रखा गया था... कुछ लड़किया हमेशा अविरल को उसके लम्बे बालो के लिए छेड़ती थी फिर क्या पुरे प्रोग्राम मे जंग मच गयी.... प्रेक्षा ने उन लड़कियों के बालो को नोच खाया....तबसे राघव प्रेक्षा को अपनी भाभी बुलाता है....|
प्रेक्षा उन तस्वीरों को देख मन ही मन मे उन पलो को याद किये मुस्कुराये जा रही थी.... की अचानक एक बॉल सीधा दादी के कमरे की खिड़की मे छेड़ कर प्रेक्षा के पीछे पड़े एक वाज़ पर जा लगी और वाज़ चकना चूर हो निचे गिर गया...|
मीरा अचानक चिल्लाई.... बाहर अवि,राघव और छोटे बच्चे थे जो क्रिकेट खेल रहे थे...|
"अवि भैया.... आपने इतना जोर से क्यों मारा... अब आप ही लेकर आइये बॉल..." एक छोटे बच्चे ने कहां "हा... हा जा रहा हु अवि ने बेट राघव की और फेकते हुए कहा..|
अवि प्रेक्षा के घर जा ही रहा था की प्रेक्षा दरवाजे पर मिल गयी.. उसने बोल को अवि की तरफ फेका और मुँह हिलाते हुए अंदर चली गयी..|
अवि को अजीब लगा उसने बॉल उन बच्चों की तरफ फेकि और प्रेक्षा के घर मे चला गया...
प्रेक्षा बिखरे वाज़ के टुकड़ो को समेट रही थी... की एक टुकड़ा उसके पैर मे लगा वो आह भरने ही वाली थी की अवि ने उसे गोद मे उठा लिया.. और अपने पैरो को बचाते हुए प्रेक्षा को बेड पर बिठा दिया.. "एक काम तुमसे ठंग से नहीं होता.. वही बैठी रहो मै करता हु "
वाज़ के टुकड़ो को समेट वो दादी की अलमारी मे कुछ टटोलने लगा और अंदर से एक पुराना ढब्बा निकला जिसमे दवाइयां रखी थी...
उसने प्रेक्षा के पर को उठाया और उस पर दवाई लगाने लग |
प्रेक्षा मे दवाई उसके हाथ से लेते हुए कहां "मे कर दूंगी "
अवि ने ज़िद्द नहीं की और हम्म का इशारा कर वहां से जाने लगा.. जाते वक्त उसे टेबल पर एक तस्वीर दिखी... वो तस्वीर प्रेक्षा और उसके बचपन की थी... उसने धिरे से हाथ फैलाया और चोरो की तरह तस्वीर को अपने साथ ले गया....|
अगली सुबह प्रेक्षा अपने घर के बाहर झाड़ू लगा रही थी... अविरल भूतिया शकल बनाये अभी अभी उठा था,और बर्श करते हुए बाहर गोते मर रहा था ...... एक लड़की प्रेक्षा की तरफ भागी आरही थी... उसने आते ही प्रेक्षा को गले लगा लिया... वो गरिमा थी प्रेक्षा के कुछ गिन्नीदा दोस्तों मे से एक.... प्रेक्षा खुश थी उसे देख....
तभी अविरल बाहर आया.. उसने गरिमा को देखते ही कहां "हेय... बड़े लोगो का हमारी गली मे आने का कैसे हुआ आज "
एक जोरदार टपली अवि के सर पर पड़ी राघव के हाथ से और कहां "तुम्हे खूबसूरत चीजों की इज्जत करना नहीं आती क्या "
अवि ने थूथबार्श से राघव को मारने की कोशिश की
"वैसे हमारे गरीब खाने मे आपका स्वागत है राजकुमारी जी "
राघव ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहां...गरिमा ने इग्नोर मारा राघव को वो भी गन्दा वाला ????
"सब लोग वेसशन पर आये है तो सबने प्लान बनाया है कैंपिंग का... तुम दोनों के नम्बर नहीं थे तो सोचा मे आकर पूछ लू..." गरिमा ने कहां
"कैंपिंग " अवि ने सोचते हुए कहां
प्रेक्षा ने जट से हा कह दी वो थोड़े दिनों के लिए बाहर की ताजी हवा खाना चाहती थी.. उसे घर मे अकेलापन भी महसूस होने लगा था...|
अवि ने भी हा कह दि और अंदर चला गया .....|
"भाई... परम पूज्य भ्राता... मुझे भी आना है प्ल्ज़्ज़ राघव भी अवि के पीछे चला गया |
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