अविस्मरणीय होली

अविस्मरणीय होली
अविस्मरणीय होली!
सोनम की मां ने पूछा बेटा जरा देखना तो कैलेंडर मे इस बार होली कब आ रही है? सोनम ने कैलेण्डर के होली
वाले दिन को मां को दिखाते हुए कहा माँ होली अगले हफ्ते 25 तारीख को आ रही है! माँ बोली बेटा बहोत
सी तैयारियां करनी है, तू मुझे कुछ सामान ला कर देना मैं तुम्हारे पापा की और सभी की पसंदीदा
पुरणपोळी(मिठी रोटी) बनाने वाली हू! सोनम होली वाली पुरानी यादों मे खो गई। उसे याद आया होली का
वह दिन जब वो नौवीं कक्षा मे थी। मां ने हर बार की तरह इस बार भी होली का नियोजन किया था कुछ वडे
और पकौडियो के साथ पुरणपोळी (मीठी रोटी) बनाने के लिए कुछ सामाग्री इक कागज की पर्ची पर
लिखकर सोनम की हाथ मे पांचसौ रुपये की इक नोट और सामान की पर्ची थमाकर सब सामान ले कर
आने को कहा! रंगपंचमी का दिन था सुबह के 8 बज रहे थे सोनम ने पांचवीं मंजिल से अपनी खिड़की से नीचे
झाँककर देखकर ये पुष्टी की कि कोई रंग तो नहीं खेल रहा? लेकिन नीचे उसे कोई रंगपंचमी खेलते हुए नहीं
दिखाई दिया। वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि इस बार कॉलोनी की कमिटी ने इमारत के दर्शनी भाग में
होली खेलने से सभी को सख्त मना किया था! सोनम इसी भ्रम मे घर से लिफ्ट मे ये मन ही मन खुसुर-पुसुर
करते निकली की जल्दी जल्दी जा कर सामान ले आती हू, नहीं तो कोई मुझे रंग देगा! अपनी इस होशियारी
को सराहते हुए वो लिफ्ट से बाहर निकली और जैसे ही थोड़े कदम आगे बढ़ी वैसे ही उसने देखा कॉलोनी के
सब बच्चे और बड़े इमारत के पिछले हिस्से में रंगपंचमी खेल रहे थे। जैसे ही कॉलोनी के उसी की उम्र के और
कुछ बड़े कालेज जाने वाले लड़कों ने उसे देखा वे जोर से चिल्लाए सोनम को रंगना है उसे रोको! उसे रंग दो!
ये सुनते ही सोनम लिफ्ट की ओर भागी और लिफ्ट का दरवाजा बंद कर ही रहीं थीं के सब लड़के भाग कर
तेजी से आए और सोनम को रोककर लिफ्ट के बाहर खिंचा और इमारत के बाहर ले आए। तब सोनम
चिल्लाते हुए बोली रूक जाओ मेरे पास पैसे है वो भीग जाएंगे लेकिन उसकी किसी ने भी एक ना सुनी!
होली है! होली है! ऐसे चिल्लाते हुए सभी लड़कों ने सोनम के चेहरे पर रंग लगा दिया। कुछ लोगों ने उसके
पीठ पर पानी से भरे गुब्बारों को उसके पीठ पर फोड़ फोड़ कर उसे पूरी तरह से गिला कर दिया! और आखिर
संपूर्ण भिगो कर वहा से चले गए! सोनम को बहोत गुस्सा भी आरहा था और डर भी लगने लगा जब उसने
देखा माँ ने उसे जो पांच सौ रुपये की नोट दी थी वो पूरी तरह से भीग और रंग गई थी। वो वैसे ही किराने की
दुकान मे गई और सब सामान की लिस्ट दुकान वाले अंकल को थमा दी! अनहोनी सामान के थैले को देते
हुए पैसे की मांग की। सोनम ने उन्हें वही रंग से भरी पांच सौ की नोट उन्हें दे दी! अंकल ने वो नोट लेने से मना
कर दिया और सोनम ने भी नाराज़ भाव से सामान की थैली वापस कर दी! सोनम को समझ नहीं आ रहा था
कि वो करे तो क्या करे और मां को क्या जवाब दे! माँ के पूरे नियोजन को चौपट होते हुए देखना बहोत दुख
दायक लग रहा था। इसी विचारों को सोचते सोचते वो कॉलोनी की इमारत के अंदर पहुंचीं तो सब लड़के बैठे
बैठे जोर से गपशप कर रहे थे। सोनम उन सब मे बड़े उम्र वाले लड़के को कहा:मां ने मुझे सामान लाने भेजा था
और आप सब ने मेरी बात सुनी भी नहीं और मुझे रंग दिया। मेरी पाँच सौ रुपए की नोट दुकानदार नहीं ले
रहा। ये सब आप लोगों की गलती है इसीलिये आप मुझे या तो दूसरी नोट दे दो या मैं आप के पापा को इस
बारे मे बता देती हू? सब के हंसी वाले चेहरे के रंग ये सुनते ही उतर गए और गम्भीर हो गए! सब ने मिलकर चुप
चाप थोड़े थोड़े पैसे इकट्ठे कर के पाँच सौ रुपये सोनम के हाथ में रख दिए! सोनम दुकान जा कर सब सामान
लिया और तब से लेकर आज तक होली में रंग नहीं खेले! ऐसी अनोखी और अजब होली के रंगों की अमिट
छाप सोनम के मन पर हमेशा के लिए पड़ गई थी!
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