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डाकिया से
तुझसे बड़ा दगाबाज शायद कोई ना होगा
जो दे तसल्ली झूठी बार-बार
निगाहों में यूं ही लगातार अरमान जगाए
बोले, होगी रूठी वह इस बार,
डाकिया इतना ही बोलता है।
आज कोई चिट्ठी नहीं आई है
कल शायद आने वाली है
मेरा दिल टूटने से बचा रहा है या फिर
है कोई बात जो कहने वाली नहीं है
डाकिया क्या सोचता है?
एक बात बता तो फिर मुझे डाकिए है
क्या बाहर ही अंधेरा है
यह मेरी आंखें ही बंद है
या मेरी आंखों पर इश्क का पहरा है?
डाकिया चुप ही रह गया
बिंदेश कुमार झा
| Rank | Name | Points |
|---|---|---|
| 1 | Srivats_1811 | 1355 |
| 2 | Kimi writes | 378 |
| 3 | Sarvodya Singh | 116 |
| 4 | Manish_5 | 105 |
| 5 | AkankshaC | 93 |
| 6 | Udeeta Borpujari | 86 |
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| 8 | Rahul Gupte | 66 |
| 9 | Anshika | 53 |
| 10 | Srividya Ivauri | 52 |
| Rank | Name | Points |
|---|---|---|
| 1 | Srivats_1811 | 1131 |
| 2 | Kimi writes | 508 |
| 3 | Manish_5 | 383 |
| 4 | Anshika | 262 |
| 5 | Rahul_100 | 246 |
| 6 | Udeeta Borpujari | 209 |
| 7 | AkankshaC | 195 |
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| 9 | Wrsatyam | 148 |
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